Monday, September 1, 2014

Beyond Manzil

Beyond Manzil

With open minds and hearts, there is no limit to what we can learn!


At Manzil we believe there are no limits to learn and explore!
Thus, in our classes learning goes beyond Maths, English and Computers. We and our students are constantly seizing opportunities to experience the kind of learning which deeply connects us to the world, and to each others. Recently, several young students learnt how to produce their own food; an essential idea which, in a city where vegetables come in plastic wrappers, most of them had never really considered.

Kapil, founder of Sajeev Fresh, generously facilitated a workshop in which the students built their own U‘rban Farm’. Their bodies stretched and crouched to examine seeds and lay soil, and were rewarded later with fresh and wholesome food. They used their minds to grasp the basics of plant growth and the logic which guides the practice of farming. And, when they received a few seeds in their palms at the end of the afternoon, their souls were set alight by the prospect of watching vegetables grow in their balcony at home.

We’re also very grateful to Chakmak Magazine, who has given us all the chance to combine our creativity and intellect, something which doesn’t often happen in a traditional learning environment. Each month, our students enjoy listening to a poem written by the renowned poet Gulzar Sahab, and then express what it means to each of them by making a painting. The artwork of five Manzil students has already appeared in the magazine over the past few months, with one painting selected by Gulzar Sahab himself as he found it be a beautiful representation of his words.

For Chakmak, the students also put their pens to paper to write some poetry, many for the first time. Some took a journey into a special memory lane and recalled what they could see, hear, touch, smell and taste. Others felt the array emotions they experience in a day, or what they like the most about their family and friends. And spread their emotions on paper. It was a joy to watch them think about all these different aspects of their lives, gradually becoming more and more self-aware about their ideas, and realize that they have innate in them.

At Manzil, art and craft isn’t limited to drawing and painting. Recently four students were lucky enough to attend a week long Puppetry workshop by Katkatha organized by the Nehru Learning Centre. Throughout the week, two members of Katkatha (one an old Manzil student), helped children of all ages and backgrounds try their hands at shadow and glove puppetry. The students scripted their own stories, made glove puppets from simple recycled materials, learnt to manipulate their puppets, and finally performed their stories in front of each other. Their imagination was limitless. Rohit, a 9 year old student of English at Manzil, based his performance on a tree which instead of growing fruit, grew chocolate! Unfortunately, it didn’t end well. The main character lost all of his teeth from being too greedy.

One of the most valuable things about being together in the Manzil space is that we learn how to communicate with one another lovingly. We believe that communication, like drawing and puppetry, is an art! To develop this vital skill, the core team and teachers have taken time away from everyday work to explore Non Violent Communication (NVC). The sessions were intense, and left us all feeling very connected to one another. We are already seeing the love everyone has to offer us more clearly, and expressing our love in a way that everyone else can see it, too.

We can’t wait to see what else there is for us to experience together beyond our Manzil classroom. With open minds and hearts, there is no limit to what we can learn!

(Cailin Burney-O'Dowd)

Inspirational Story

Inspirational Story
“प्रेम”




जीवन इश्वर का एक वरदान है | तभी हर दिल में उसका स्थान है | इस स्थान कों कोई भक्तिकहता है तो कोई प्रेम | और इसी तरह इश्वर के प्रति अपनी भक्ति और प्रेम दिखातें हूऐ श्री बृजमोहन महाराज और उनके कुछ साथियों नें 1 जनवरी 2012 कों प्रेम नामक एक संगठन जो की कालकाजी मैं स्थित है, का शुभआरम्भ किया |

आज प्रेम उस रथ के समान है जो इस पर सवार बच्चों कों उनकी मंजिल तक पहुँचा रहाँ है | इस रथ की कमान सम्भाले श्री सुनीत सामल जी और उनके साथी, बच्चों का सही मार्गदर्शन कर रहें है | 

प्रेम कि कक्षाओं की कमान संभाले लोग अर्थात प्रेम के अध्यापकों की टीम मंदिर से कई सालों से जुड़े हुई हैं, जो मंदिर की सेवा तथा प्रेम की सेवा दोनों करते हैं I इसके आलावा कुछ अध्यापक ऐसे भी हैं जो “प्रेम” के छात्र रह चुके है और कुछ “मंजिल” मैं भी छात्र रह चुके हैं I प्रेम उन बच्चों के प्रति बस एक सेवा मात्र है  जिन बच्चों कों देश का भाविष्य और भगवान का रूप माना जाता है | प्रेम का मकसद केवल कुछ बच्चों कों अच्छी शिक्षा आदि देनें तक ही सिमित नहीं है बल्कि यहाँ बच्चों कों निडर, नियमबद्द, आत्मविश्वासी तथा भविष्य में काबिल और अच्छा इंसान बनने का भी पाठ पढ़ाता  है | यहाँ इन बच्चों कों उन सभी चीजों कों करने तथा सीखने का जगह देता है जिनकी इजाजत उन्हें उनके विद्यालय, घर तथा समाज में आसानी से प्राप्त नहीं होती I

यहाँ बच्चों कों अपनी रुचियों के मुताबिक अपनी काबिलियत का पता चलता है | यहाँ बच्चें अपनी-अपनी रुचियों के अनुसार अंग्रेजी, गणित, कम्प्यूटर, नृत्य (कथक), संगीत, कला आदि में बिना किसी शुल्क के सारा ज्ञान प्राप्त करतें है किन्तु यदि कोई विद्यार्थी किसी तरह कि लापरवाही करें जैसे कक्षा में देरी से आना या न आना इत्यादि तो इसके लिये उससे कुछ पैसे बतौर दण्ड लिया जाता है | यह मंजिल के मूल सिधान्तो के सामान ही है; सिखने का कोई मोल नहीं है, पर न सिखने पर आपको मूल्य देना होगा | इससे बच्चें निशुल्क शिक्षा के माएने भी समझते है और भविष्य में उन गलतियों कों दोहराते भी नहीं है जिसके फलस्वरुप बच्चें अपनी जिम्मेदारी कों समझते है | यहाँ बच्चों को Trips के लिए भी ले जाया जाता है तथा सभी प्रकार के त्योंहारों को भी बड़े प्रेम भावना से मनाया जाता है I

यह प्रेम संस्था एक “मंदिर श्री राम शरणम” जो दिल्ली के कालकाजी इलाके में है, स्थित है | यहाँ कुछ सिखने के इच्छुक बच्चे ठीक उसी तरह से खिचे चले आतें है जैसे चुम्बक के पास लोहा |


                (ओम दुबे)

Manzil's Got Talent

Manzil's Got Talent


Picture made by Wasim Akram (student of English and Maths class)


बचपन में दादी मुझे अपने पास बैठा कर भजन सिखाया करती थी और मैं बड़े चाव से उन्हें याद करती थी उस वक़्त मुझे पता नही था कि वो शौक मुझे लोगो के सामने एक गायक कलाकर के रूप में लाकर खड़ा कर देगा। आज जब भी मैं गाती हुँ तो मुझे वो शुरूवात हमेंशा याद आती है। इसी तरह हम सभी के जीवन में कुछ ऐसी चीज़े होती है। जो हमारा लक्ष्य नही होती पर फिर भी हासिल हो जाती है। हमारी छोटी छोटी कोशिशे हमें बड़ा मुकाम हासिल करा देती है।ऐसा ही मंजि़ल के कुछ छोटे छोटे बच्चो ने कर दिखाया है
मंजि़ल के एक प्रयास से मंजि़ल के ही कुछ बच्चे चकमकनाम की एक पत्रिका में अपनी कवितांए और अन्य रचनाएं दे रहे थे। उत्तर प्रदेश के राज्यो में एक मशहुर कहावत है कि हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े लिखे को फारसी क्या” अगर पता न हो इसका मतलब बता दूं, कि जो चीजों आंखो से देख सकते है उसके लिए शीशे की ज़रूरत नही पडती। ठीक इसी तरह मंजि़ल में कितनी कला छुपी है ये किसी को बताने की ज़रूरत नही है। मंजि़ल के बच्चो ने अपने काम से इतना नाम बटौरा है कि उन्हें परिचय की ज़रूरत नही है। आज फिर उन्ही में से कुछ कलाकारो को सरहाने का काम मैं कर रही हुँ। चकमक नाम की एक पत्रिका है जो हर महीने अपना एक अंक प्रकाशित करती है। अपनी पत्रिका में वे गुलज़ार जी की कविताएं बच्चों कि कला के ज़रिये भी प्रकाशित करते है। साथ ही मंजि़ल के कुछ बच्चे अपने चित्रों को भी इस पत्रिका के लिए भेजते है। ये एक गौरव की बात है कि मंजि़ल के 8 से 10 साल के बच्चें गुलज़ार जी के साथ एक पत्रिका सांझा करते है। साथ ही वे गुलज़ार जी की कविताओं को अपने चित्रों में उतारते है और अपने समझ के रंगो से सजाते है। ये सभी चित्र खुद गुलज़ार जी देखते है और उनमें से एक चित्र को चुनते है जो कि चकमकके वार्षिक अंश में प्रकाशित होती है। मंजि़ल से शुभम शीर्ष 25 क्षात्रो में से एक है जिसने सबसे अच्छा काम किया है। जानने की बात यह है कि इंगलिश व गणित क्लास के छात्रों ने कभी सोचा भी नही था कि वो तस्वीरे बनाएंगे और वो भी गुलज़ार जी की कवितओं से प्रभावित।मंजिल अपने सभी बच्चों पर विश्वास करता है, कि वह वो सब कर सकते है जो उन्होने सोचा भी न हो। इसी कोशिश का फल है 4 महीनों में करीबन 10 बच्चे जो मंजि़ल का नाम पूरे भारत में फैला रहे है। मंजि़ल सभी युवाओ को ऐसे मौके देता रहा है और देता रहेगा। अगली बार नया समाचार मंजि़ल गाँट टैंलेट के साथ।



धन्यावाद।

                                  (नीति पांडे)

मुुद्दा ज़रा गंभीर है।


मुुद्दा ज़रा गंभीर है।


Photo by Anurag Hoon (Senior Coordinator, Manzil)



आज़ादी, आज से पहले ये मुद्दा मुझे उतना उलझा हुआ नही लगा था, पर आज जब मंजि़ल ने ये शब्द मुझे दिया और कहा कि इस पर एक अर्टिकल लिखो और मैने अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाए तब पता चला कि ये शब्द जो सिर्फ तीन अक्षरों से बना है। सच में कितना बड़ा है। हम सब के लिए बहुत आसान है यह कहना की हम आज़ाद है, पर एक बार फिर सवाल करें खुद से कि क्या हम सच में आज़ाद है?
और फिर इसी के साथ ये सवाल भी जन्म लेता है कि मेरे लिए आज़ादी का मतलब क्या है? हम सभी अपनी आज़ादी का मतलब खुद तय करते है। साथ ही आज़ादी का मतलब उम्र, समझ और परिस्थितियों के साथ बदल जाता है। जब हम छोटे होते है तो हमारे लिए आज़ादी जी भर कर चॉकलेट खाना होता है, जी भर के खेलना होता है, और जब हम बड़े होते है तो उसी आज़ादी का अर्थ बदल जाता है और हम चाहने लगते है कि हमें घुमने, खाने और अपनी पसन्द के कपड़े पहनने की आज़ादी मिलें। यें एक ऐसा बदलाव है जो सबके जीवन में आता है छोटे में कहे तो हम चाहते है कि हम अपनी जीवन अपने तरीको से लिए, अपनी शर्तो पे और अपने सपनो के साथ। स्वतंत्रता एक ऐसा शब्द है जिसे सबसे ग़लत तरीके से समझा और समझाया गया है। आज़ादी का मतलब समाज के विरोध में होना नही है और न ही खुद को अपने आसपास की दुनिया से अलग कर लेना।आज़ादी गलत करना भी नही है, और सही करना भी, आज़ादी पाप करना भी नही है और पुण्य करना भी नही है। वास्तव में आज़ादी है इसमें से एक को चुनने का अधिकार आप क्या करना चाहते है, कैसे कब ये आप का निर्णय हो यही आज़ादी है। आज़ादी है कि हम नया सोच सकें और कर सकें। पर इसी के साथ आज़ादी एक जिम्मेदारी भी है। ये मान लेना कि सिर्फ मैं आज़ाद हूँ और बाकी सबसे आपका मतलब नहीं, आज़ादी के प्रति एक गलत सोच होगी। मान लीजिये की समुंद्र की आज़ादी है कि वो अपनी सीमांओ को तोड़ कर बाहर निकल आए, या फिर ह़वा सोचे कि मैं आज़ाद हूँ और अब मैं आराम करूंगी और रूक जाउंगी तो क्या होगा? एसी स्थिति में जीवन का अंत हो जाएगा। ठीक वैसे ही जैसे अधिकारों के साथ ही कर्तव्य जुड़े है। उसी तरह स्वंतत्रता के अधिकार में ही जि़म्मेदारी छुपी हुई है किस तरह दोनो में तालमेल बैठाया जाए ये आप खुद सोचे और अपने साथ-साथ दुसरो को भी आज़ाद रहने दें। आखिर में यही कहुंगी की आज़ादी का मतलब जि़म्मेदारियो से मुंह चुराना नही होता बल्कि दोनो के बीच तालमेल बनाना होता है। अब अगली बार खुद को आज़ाद कहेें तो ये भी सोचे कि आप जि़म्मेदार आज़ाद हैं या नही?


 (नीति पांडे)

Gratitude Note

Gratitude Note

Raseel             &           Mehtab


मंजिल एक ऐसा स्थान है जहाँ कई लोगो ने अपनी ज़िन्दगी कि मंजिलों को पाया है। उसी मंजिल को पाने कि दौड़ में था हमारा मंजिल का आर्ट एंड क्राफ्ट ग्रुप जिसको उन्होंने पाया खुदही कि मेहनत से। जेसा कि हमने दिसम्बर के प्रकाशन मे मंजिल के उभरते टैलेंट क्राफ्टकारी के बारे मे बताया था के ये ग्रुप अपनी प्रतिभा कों कुछ दस्तस्कार कागज के ज़रिये दुनिया कों दिखा रहा है।

निस्संदेह ये सफर इतना आसन नहीं जितना लगता है पर अपनी मंजिल कि ओर बड़ते हुए हाल ही मे क्राफ्टकारी  के हाथों को कुछ लोगों ने थामा, जिसके बारे मे क्राफ्टकारी परिवार की एक सदस्या  गुँजन कश्यप ने हमारे साथ उनके साथ बीता अनुभव साँझा किया।

मंजिल में मैं आर्ट एंड क्राफ्ट सीख रही हुँ और साथ ही साथ क्राफ्टकारीमें काम कर रही हुँ। अब मै आप को कुछ बताना चाहती हूँ मंजिल संस्था से दो नये लोग जुड़े हैें और मंजिल संस्था की सहायता कर रहें हैं। उनका नाम है ‘‘मेहताब भईया’’ और रसील दीदी’ ‘मेहताब भईया और रसील दीदीक्राफ्टकारी के सामान को ओन.लाईन बेचने मे हमारी सहायता कर रहे है। सबसे पहले दोनो ने क्राफ्टकारीकी वेबसाइट बनाई है और आन-लाइन हमारे लिए नए द्वार बनाए वस्तुऐ बेचने के लिये। इसमे इन दोनों का बहुत बड़ा योगदान है। क्राफ्टकारीसे जुड़ी सारी जानकारी इख्खटा कर इन्होंने हमारी सरल दुनिया  को और भी खुबसूरत बना दिया है। मेहताब भईया बहुत ही खुश मिज़ाज़ ईसान है,खुले दिल के है। सबसे अच्छी बात तो यह है की उन्हे कुछ भी काम दो कभी मना नही करते है। हर काम कों अपना समझकर ही नही बल्कि अपनी जिम्मेदारी समझकर करते है। दिल से लग्न से काम करते है और मेहताब भईयासे कुछ भी पूछ लो हर सवाल का जवाब होता है जो उनकी बुद्धिमता को दर्शाता है । मेहताब भईया अपना काम करते है इसके अलावा वह क्राफ्टकारी की मीटिंग मे समय निेकाल कर आते है और क्राफ्टकारीसे जुड़ी सारी जानकारी देते है और रखते भी है । मेहताब भईयाको कभी भी कुछ गलत बात या गलत काम ये सब पसंद नही है वह कभी कुछ गलत बर्दाश नही करते है।

 ‘मेहताब भईयाफोटोग्राफी’ में भी उत्तीर्ण है। उन्होने न सिर्फ क्राफ्टकारीकी वेबसाइट बनाई उन्होंने क्राफ्टकारीका फोटोशूट भी किया । फोटोशूट के लिये हमे पेशेवर स्टूडियो चाहिए था उसका बंदोबस्त भी मेहताब भईयाने किया और हमारे लिये अपने घर के रास्ते खोले ।अपने घर पर सबको बुलाकर सारा बंदोबस्त अच्छे से किया और साथ ही साथ मिलके सबसे बहुत अच्छे से बातचीत की । हम सबसे अच्छे से पेश आये हमें लगा ही नही कि हम सब पहली बार मिले हैं।

जहाँ एक हाथ थामे मेहताब भईयाहमारी  बहुत मदद कर रहे हैं और अपनी जिम्मेदारी भी निभा रहे हैं वहीं हमारे दुसरे हाथ को थामा रसील दीदीने ।ख़ुद  कि वियस्त ज़िन्दगी और नौकरी से समय निकाल कर रसील दीदी भी क्राफ्टकारीकि वेबसाइट मे हमारी बहुत सहायता कर रही है । रसील दीदी के साथ समय बिता कर मैं कह सकती हूँ के रसील दीदी बहुत ही स्वीट है और बहुत बुद्धिमान भी हैं। अपने काम के साथ-साथ वह क्राफ्टकारीका हर काम अपनी जिम्मेदारी समझ कर रही हैं और समय निकाल कर क्राफ्टकारीकी मीटिंग मे शामिल होती है। रसील दीदी की एक अच्छी बात है कि वह मीटिंग में शामिल होकर अपने काम से चर्चित सारी बातें नोट करती है और काम से चर्चित सारी बात पूछँती है और जानकारी लेती है और देती भी है। उनके पास हमेशा काम से जुड़ी हर चीज का रिेकार्ड होता है ताकि कहीं कुछ कठिनाई आए तो वह समय पर उन रिकोर्ड के ज़रिये उन कठिनाईयों का हल आसानी से निकल सके । रसील दीदी’ को कुछ भी काम कहो वह कभी मना नही करती हमेशा हर काम के लिए अपने आपको तैयार रखती हैं । रसील दीदी’ में आत्मविश्वास है और यही वजह है कि वह क्राफ्टकारी से जुड़े हर काम को काम समझकर नही बल्कि अपनी जिम्मेदारी समझकर करती हैं और हर काम लग्न और दिल से करती है |

मेहताब भईयाऔर रसील दीदीहर काम को बहुत ही पेशेवर रूप से करते है | हर काम को करने में ये दोनों हमारी बहुत बड़ी प्रेरणा भी बन चुके हैं । दोनो अपने-अपने काम को समय पर करते हैं और किसी की भी गलती का मौका नही देते। दोनों ही हमें हर मोड़ पर कुछ न कुछ सिखाते रहते है और अक्सर कहते भी हैं कि  कही कोई गलती नही होनी चाहिए हर काम दिल से करो और सफाई से करो लग्न से करो तो कभी कोई गलती नही होगी। अंत में मैं रसील दीदीऔर मेहताब भईयाका क्राफ्टकारी एवं मंजिल से जुड़ने के लिये बहुत शुक्रिया देना चाहूंगी | हमे ख़ुशी है के आप हमारे साथ जुड़े और आपकी क्राफ्टकारी एवं मंजिल से जुड़ी हर एक कोशिश के लिये हम सब आपके आभारी है | आपका बहुत बहुत धन्यवाद |

             (गुँजन कश्यप व अनुराग हूँण)